श्रद्धेय श्री राजकुमार शर्मा (राजन महाराज) का जन्म 29 अप्रैल 1944 में धमधा, जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़ में हुआ। उनकी माता स्व. श्रीमती हेमा देवी शर्मा एवं पिता स्व.श्री बिष्णु प्रसाद शर्मा ग्राम मोहदी, पोस्ट नारधा, जिला दुर्ग छत्तीसगढ़ के मूल निवासी थे। श्री बिष्णु प्रसाद शर्मा रामचरितमानस के सुप्रसिद्ध व्याख्याकार एवं मानस मर्मज्ञ थे। श्री राजन महाराज जी का आश्रम अभ्युदय संस्थान, अछोटी, कुम्हारी से अहिवारा मार्ग पर है तथा पारिवारिक निवास का संप्रति पूर्ण पता गायत्री शक्तिपीठ, वार्ड क्र. 9, नंदिनी नगर, जिला दुर्ग है।
राजन महाराज जी ने बेसिक स्कूल धमधा में शिक्षा ग्रहण कर उच्च शिक्षा साइंस कॉलेज दुर्ग में प्राप्त की। और अर्थशास्त्र में एम.ए. कर लेने के बाद गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। राजन जी ने उसके बाद अपनी गहरी अध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ की। उनके शोध एवं साधना का विषय मुख्यतः आत्मदर्शन रहा। मैं कौन हूँ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैंने संसार में जन्म क्यों लिया? संसार के अन्य लोगों की भाँति क्या मैं भी मृत्यु को प्राप्त करूँगा? इन प्रश्नों के उत्तर के अन्वेषण में उन्होंने कई वर्ष साधु एवं तपस्वी जीवन व्यतीत किए। फिर 22 वर्षों से अधिक समय तक कठोर साधना करते हुए अपने प्राप्त ज्ञान का पूरे छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त बाहर देश-विदेशों में भी प्रचार किया। उनके आध्यात्मिक यात्रा काल में पहला श्रीमद् भागवत पुराण प्रवचन 35 वर्ष की उम्र में 15 सितंबर 1981 दुर्ग संतराबाड़ी, गायत्री शक्तिपीठ में आयोजित हुआ। उनके जीवन काल में पहला गायत्री यज्ञ नारधा रुक्खड़नाथ मंदिर में संपन्न हुआ। उसी समय राजन जी युग निर्माण योजना गायत्री शक्ति पीठ से जुड़े एवं अभी तक अनगिनत यज्ञों का आयोजन वे कर चुके हैं और अभी भी करते ही रहते हैं। 16-17 फरवरी को साधना के समय उन्हें ‘विचार शून्यता’ अर्थात ‘सिद्धि’ प्राप्त हुई। दुर्ग में शिवनाथ नदी के किनारे कार्तिक माह की आँवला नवमी के दिन माँ काली का साक्षात्कार हुआ और माँ ने जलता हुआ एक दीपक जो नदी में बह रहा था, उसकी ओर संकेत कर कहा ‘इसी दीपक की भाँति दुनिया में घूमना।’ अध्ययन काल में बी.ए. की अंतिम परीक्षा स्वाध्याय (प्राइवेट) छात्र के रूप में देकर पूरे विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। उसके बाद साइंस कॉलेज दुर्ग से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया, क्योंकि उस समय कॉलेज में दूसरा विषय था भी नहीं।
अभ्युदय संस्थान अछोटी को केंद्र बनाकर अमरकंटक वाले श्री ए.नागराज बाबा के मार्गदर्शन में ‘जीवन विद्या – मध्यस्थ दर्शन’ को आत्मसात किया। इस दर्शन के द्वारा श्री नागराज बाबा ने श्री राजन जी को मानव जीवन के समग्र विकास का पथ प्रशस्त करवाया। साथ ही अभ्युदय संस्थान में ही जीवन विद्या के अनुपालन, अध्ययन के साथ-साथ ध्यान योग, आयुर्वेद चिकित्सा तथा गौपालन व जैविक कृषि की दिशा में काम करवाया। इस तरह के कार्यों में स्वामी मुक्तानंद जी, श्री राम शर्मा आचार्य और श्री नागराज बाबा का उन्हें भरपूर मार्गदर्शन व अाशीर्वाद मिला। बाल्यकाल से ही अध्यात्म में रुचि एवं पिता के सत्संगी व धार्मिक स्वभाव के कारण राजन जी आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति कर के आज भारत में ही नहीं विदेशों में भी धर्मोपदेशक के रूप में वेदांत दर्शन, मध्यस्थ दर्शन, जीवन विद्या और देवी भागवत, श्रीमद् भागवत कथा का प्रवचन करते हैं तथा आज भी प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित महोत्सव पर देश-विदेश के शिष्यगण कथा श्रवण हेतु ग्राम मोहदी में पधारते हैं। जहाँ प्रति माह भंडारा होता ही रहता है। लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर प्रतिवर्ष श्री रुक्खड़नाथ महोत्सव के भव्य समारोह में विशाल भंडारा का आयोजन होता है। जहाँ आसपास के लगभग 5-10 गाँवों के लोग एकत्रित होते हैं। आनंद लाभ लेते हैं। श्री राजन जी की आध्यत्मिक, धार्मिक एवं अन्य कार्यक्रमों की यात्रा अनवरत् जारी है। ˜
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